Impact of bad language on character ख़राब भाषा का चरित्र पर प्रभाव
भद्दे शब्दों का इस्तेमाल ध्यानाकर्षण का एक तरीका है....यह चारित्रिक का भी निशान है |
भाषा में मर्यादा की अब कोई सीमा नही रह गई | आम बोलचाल से लेकर सोशल मिडिया और यहाँ तक की फिल्म व साहित्य में भी चलताऊ शब्दों की बेजा घुसपैट समाज को अंधी गली पर ले जा रही है | वयस्कों के साथ किशोरों यहाँ तक बच्चो की जुबान पर भी इन शब्दों का इस्तेमाल बढ़ रहा है |
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भाषा में मर्यादा की अब कोई सीमा नही रह गई | आम बोलचाल से लेकर सोशल मिडिया और यहाँ तक की फिल्म व साहित्य में भी चलताऊ शब्दों की बेजा घुसपैट समाज को अंधी गली पर ले जा रही है | वयस्कों के साथ किशोरों यहाँ तक बच्चो की जुबान पर भी इन शब्दों का इस्तेमाल बढ़ रहा है |
महज गुस्से की प्रतिक्रिया नहीं !
ऐसा माना जाता है की गुस्से में जुबान से अपशब्द निकल जाते है | पुरुषो के लिए यह असामान्य नही रहा | कई बार पुरुष धौंस ज़माने के लिए भद्दे शब्दों इस्तेमाल करते थे | इतिहास पर नजर दौडाए तो पाएंगे की गुस्सा, द्वेष पहले भी था, लेकिन तब भाषा मर्यादित होती थी | अब भद्दे गुस्से प्रतिक्रिया के साथ-साथ चलन रूप में स्वीकार्य होने लगे है |
ये नकारात्मक का आकर्षण है !
सामान्य पुरुष बोलने वालों की तरह कोईध्यान नही देता | धरा के विपरीत, ओरो से अगर होने की छह में चलताऊ शब्दों का इस्तेमाल बहुत बढ़ गया है | इसे बचपन में मनोविज्ञान से समझ सकते थे | जो बच्चे माता-पिता का कहना नही मानते, उनके पीछे माता-पिता घुमाते रहते है | इस तरह बच्चो के दिमाग में भी आ जाता है की जब तक कुछ हट कर नही करेंगे, तब तक उन्हें महत्व नही मिलने वाला |
यह आधुनिक हर्गिज नही है !
बतची में भद्दे शब्दों का इस्तेमाल आम हो गया है | जिन शब्दों का इस्तेमाल परिवार-भाई-बहन के बीच में करने से कतराते है, वही कॉलेज में दोस्तों के बीच बेधडक इस्तेमाल कर रहे है | अंगेजी में भद्दे शब्दों की टिप्पणी को स्वीकार्य माना जा रहा अहि | इस मामले में लडके- लडकिया में खास अंतर नही रह गया है |
क्या समाज ऐसा हो गया है ?
साहित्य और फिल्म समाज का आईना है | लेकिन आज चलताउपन को जिस तेजी से प्रचार और प्रसिद्धि मिल रही है उसी का परिणाम है की मर्यादित रहकर उजले पक्षों पर कोई नहीलिखना चाहता है | कहानिकार को लगता है की समाज का आधा सच दिखाने के लिए उन शब्दों का इस्तेमाल भी जरुरी हो गया है | हर भाषा खासकर हिंदी में खुबसूरत शब्द उपलब्ध है | अभिव्यक्ति के लिए जब बेहतर शब्दों का इस्तेमाल हो सकता है, तो उथली भाषा का इस्तेमाल क्यों ? हर विषय का स्याह के साथ उजला पक्ष भी होता है | कुछ तथाकथित आधुनिक उपन्यासों में भाषा गिर रही है, तो कुछ साहित्यकार अच्छा भी लिख रहे है |
क्या दोस्ताना व्यवहार है यह ?
बच्चे माता-पिता से बात करते समय और अभिभावक बच्चो से बात करते समय 'अरे यार...' करके बात करने लगे है | इस तरह के शब्दों के बोल-चाल से बच्चे माता-पिता को और उनकी बातों को हलके में लेने लगते है | उन्हें लगता है की वह मामले को इस भाषा के इस्तेमाल से सुलझा लेंगे |You May Also Like:- Top 30 Love Quotes and Status in Hindi
बचना क्यों जरुरी
अगर इसे समाजऔर पीढ़ी में हो रहे बदलाव की तरह देख रहे है, तो यह बड़ी भूल है | अमर्यादित भाषा के इस्तेमाल के बाद व्यक्ति हिंसा की ओर जाने लगता है | समाजशास्त्र कहता है की भाषा का पतन दरअसल संस्कारों का पतन ही है | जब व्यक्ति अमर्यादित भाषा का असर कम देखता है, तो वह हिंसा करने से गुरेज नहीं करता | आखिर जबानी हमले करना आदत जो बन चुकी होती है |
क्या है समाधान
जवाब परवरिश में छुपा है | जिस तरह परवरिश और समाजीकरण हो रहा है, उसमे सावधानी रखने की जरुरत है | बच्चो का समाजीकरण घर-पडोसी और स्कूल... तीन स्तर पर होता है | घर पर भाषा का साफ़ सुथरा इस्तेमाल होता चाहिए | आस-पड़ोस, स्कूल कॉलेज में दोस्त भी व्यक्तित्व निर्माण करते है | इसलिए ध्यान रखना जरुरी है | बच्चे गलत भाषा बोले, तो खामोश रहे | पहली बार नजरअंदाज करे | डांटे, हँसे या मुंह न बनाए | दूसरी तीसरी बार में बिना धमकाए, बिना नतीजे का डर दिखाए समझाए की गन्दी भाषा का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए | ऐसे बच्चे लोकप्रिय नहीं हो पाते |
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Impact of bad language on character ख़राब भाषा का चरित्र पर प्रभाव
Reviewed by Deepak Gawariya
on
October 30, 2017
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